Saturday, April 09, 2011
रात-डा. प्रमोद कुमार
रात !
जब भी मैंने
तेरे काले तन को छुआ
एक अजीब सिहरन सी उठी
जो मेरे अंतरमन की
गहराई तक उतर गई
जहाँ दिन की उजली रोशनी भी
न पहुँच सकी ।
रात !
जब भी मैंने
तेरी अंधेरी चुप्पी को सुना
एक कड़वी सच्चाई सी मिली
जो मेरे मस्तिष्क की
गहराई में आ बसी
जिसे मैं दिन के तेज शोर में भी
न सुन सका ।
रात !
जब भी मैंने ,
तेरी काली आँखों में झाँका
वो वफ़ाओं का मंजर देख पाया
जो मेरे दिल की
गहराई में समा गया
जिसे मैं दिन की चमकीली आँखों में भी
न देख सका ।
Email: drpramod.kumar@yahoo.in
रात !
जब भी मैंने
तेरे काले तन को छुआ
एक अजीब सिहरन सी उठी
जो मेरे अंतरमन की
गहराई तक उतर गई
जहाँ दिन की उजली रोशनी भी
न पहुँच सकी ।
रात !
जब भी मैंने
तेरी अंधेरी चुप्पी को सुना
एक कड़वी सच्चाई सी मिली
जो मेरे मस्तिष्क की
गहराई में आ बसी
जिसे मैं दिन के तेज शोर में भी
न सुन सका ।
रात !
जब भी मैंने ,
तेरी काली आँखों में झाँका
वो वफ़ाओं का मंजर देख पाया
जो मेरे दिल की
गहराई में समा गया
जिसे मैं दिन की चमकीली आँखों में भी
न देख सका ।
Email: drpramod.kumar@yahoo.in
अमावसी संसार-डा. प्रमोद कुमार
इस अमावसी संसार के
एक मिट्टी के घर में
तन्हाई बसती है ।
हर दिन गुल - महक
तन्हाई का साथ निभाने
दूर कहीं से आ जाती है
तन - मन को महका जाती है ।
हर रात हवा का झोंका
तन्हाई से बातें करने
दूर कहीं से आ जाता है
तन - मन को चहका जाता है ।
और मैं अकेला
इस अन्धे संसार में
उस घर की दीवारों के
किसी कोने में
तन्हा बैठा
यह सब निहारता
रहता हूँ ।
------------
Email: drpramod.kumar@yahoo.in
इस अमावसी संसार के
एक मिट्टी के घर में
तन्हाई बसती है ।
हर दिन गुल - महक
तन्हाई का साथ निभाने
दूर कहीं से आ जाती है
तन - मन को महका जाती है ।
हर रात हवा का झोंका
तन्हाई से बातें करने
दूर कहीं से आ जाता है
तन - मन को चहका जाता है ।
और मैं अकेला
इस अन्धे संसार में
उस घर की दीवारों के
किसी कोने में
तन्हा बैठा
यह सब निहारता
रहता हूँ ।
------------
Email: drpramod.kumar@yahoo.in
नक्षत्र - -डा. प्रमोद कुमार
तुम चाँद तो होगे
लेकिन जब भी तुम्हें
इस हदय -व्योम में
मन की आँखों से देखा
अपने एक प्रभाकर को
छुपाते हुए देखा
ग्रहण लगाते हुए देखा ।
तुम सूर्य तो होगे
लेकिन जब भी तुम्हें
यौवन की हर सुबह को
अलसाई आँखों से देखा
अपने एक नक्षत्र को
छुपाते हुए देखा
मिटाते हुए देखा ।
तुम नक्षत्र तो होगे
लेकिन जब भी मैंने
इस फैले नभ - मंडल को
सूनी रातों में देखा
तुम्हें एक नीच राशि में
आते हुए देखा
उसे चमकाते हुए देखा ।
--------------
Emai: drpramod.kumar@yahoo.in
तुम चाँद तो होगे
लेकिन जब भी तुम्हें
इस हदय -व्योम में
मन की आँखों से देखा
अपने एक प्रभाकर को
छुपाते हुए देखा
ग्रहण लगाते हुए देखा ।
तुम सूर्य तो होगे
लेकिन जब भी तुम्हें
यौवन की हर सुबह को
अलसाई आँखों से देखा
अपने एक नक्षत्र को
छुपाते हुए देखा
मिटाते हुए देखा ।
तुम नक्षत्र तो होगे
लेकिन जब भी मैंने
इस फैले नभ - मंडल को
सूनी रातों में देखा
तुम्हें एक नीच राशि में
आते हुए देखा
उसे चमकाते हुए देखा ।
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Emai: drpramod.kumar@yahoo.in
भँवर
जो दर्द दिये तूने
सीने में दबा बैठे
हर तेरी बेवफ़ाई
आँखों में सज़ा बैठे ।
हर धूप की आँखों में
सूखा सा समन्दर था
हर रात के चेहरे पे
भावों का एक भँवर था
फिर भी इसी भँवर में
कश्ती को डुबा बैठे
जो दर्द दिये तूने
सीने में दबा बैठे ।
हर बात में होंठों पे
प्यार नहीं , एक छल था
हर रोज के मिलने में
स्वार्थ जो हर पल था
हम है कि इसी छल में
जीवन को लुटा बैठे
जो दर्द दिया तूने
सीने में दबा बैठे
हर तेरी बेवफ़ाई
आँखों में सजा बैठे ।
-------------
जो दर्द दिये तूने
सीने में दबा बैठे
हर तेरी बेवफ़ाई
आँखों में सज़ा बैठे ।
हर धूप की आँखों में
सूखा सा समन्दर था
हर रात के चेहरे पे
भावों का एक भँवर था
फिर भी इसी भँवर में
कश्ती को डुबा बैठे
जो दर्द दिये तूने
सीने में दबा बैठे ।
हर बात में होंठों पे
प्यार नहीं , एक छल था
हर रोज के मिलने में
स्वार्थ जो हर पल था
हम है कि इसी छल में
जीवन को लुटा बैठे
जो दर्द दिया तूने
सीने में दबा बैठे
हर तेरी बेवफ़ाई
आँखों में सजा बैठे ।
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रेत का दरिया-डा. प्रमोद कुमार
एक ख्वाब जो देखा था
हसरत थी मेरे दिल की
दो रेत का दरिया था
एक धुंध का बादल था ।
हम उम्र गुजार बैठे
जिनकी तमन्ना करके
वो रात का मंज़र था
एक धुएँ का आँचल था ।
हर पल जिनका चाहा
सब कुछ छोड़ अपना
पानी पे चित्र था वो
बालू का एक महल था ।
एक ख्वाब जो देखा था
हसरत थी मेरे दिल की
वो रेत का दरिया था
एक धुंध का बादल था ।
----------
Email:drpramod.kumar@yahoo.in
एक ख्वाब जो देखा था
हसरत थी मेरे दिल की
दो रेत का दरिया था
एक धुंध का बादल था ।
हम उम्र गुजार बैठे
जिनकी तमन्ना करके
वो रात का मंज़र था
एक धुएँ का आँचल था ।
हर पल जिनका चाहा
सब कुछ छोड़ अपना
पानी पे चित्र था वो
बालू का एक महल था ।
एक ख्वाब जो देखा था
हसरत थी मेरे दिल की
वो रेत का दरिया था
एक धुंध का बादल था ।
----------
Email:drpramod.kumar@yahoo.in
Tuesday, March 22, 2011
प्रदूषण-डा. प्रमोद कुमार
मेरी आँखे ____
निर्मल झील सी
जिसमें तुमने
झूठ और मक्कारी का
मैल घोल दिया ।
मेरा तन ____
खिला फूल सा
जिसको तुमनें
अपने गंदे स्पर्श से
अपवित्र कर दिया ।
मेरा मन ____
साफ आकाश सा
जिसमें तुमने
धोखे व बेवफ़ाई का
प्रदूषण रोल दिया ।
मैं इन आँखों , तन और मन को
लेकर कहाँ जाऊँ ?
जब भी कोई इस झील में
झाँकता है
तेरी झूठ और मक्कारी का
मैल धुला नज़र आता है ।
जब भी कोई इस आकाश को
ताकता है
तेरे धोखे व बेवफ़ाई का
प्रदूषण फैला नजर आता हैं ।
जब भी कोई इस फूल को
देखता है
तुम्हारा वो अपवित्र स्पर्श
मुरझाहट बन नजर आता है।
डा. प्रमोद कुमार
Email: drpk1956@gmail.com
drpramod.kumar@yahoo.in
मेरी आँखे ____
निर्मल झील सी
जिसमें तुमने
झूठ और मक्कारी का
मैल घोल दिया ।
मेरा तन ____
खिला फूल सा
जिसको तुमनें
अपने गंदे स्पर्श से
अपवित्र कर दिया ।
मेरा मन ____
साफ आकाश सा
जिसमें तुमने
धोखे व बेवफ़ाई का
प्रदूषण रोल दिया ।
मैं इन आँखों , तन और मन को
लेकर कहाँ जाऊँ ?
जब भी कोई इस झील में
झाँकता है
तेरी झूठ और मक्कारी का
मैल धुला नज़र आता है ।
जब भी कोई इस आकाश को
ताकता है
तेरे धोखे व बेवफ़ाई का
प्रदूषण फैला नजर आता हैं ।
जब भी कोई इस फूल को
देखता है
तुम्हारा वो अपवित्र स्पर्श
मुरझाहट बन नजर आता है।
डा. प्रमोद कुमार
Email: drpk1956@gmail.com
drpramod.kumar@yahoo.in
और मैं इकरार करता रहा: डा. प्रमोद कुमार
और मैं इकरार करता रहा
इंतज़ार करता रहा
प्यार के स्वीकार का ।
प्यार के इकरार मैंने
हर चाँदनी , हर किरन के हाथों भेजे
लेकिन तुम चाँद देखते रहे
सूरज निहारते रहे
और मैं इकरार करता रहा
इंतजार करता रहा
प्यार के स्वीकार का ।
जीवन भरे अहसास मैंने
हर धुन , हर शब्द के हाथों भेजे
लेकिन तुम साज देखते रहे
आवाज सुनते रहे
और मैं इकरार करता रहा
इंतजार करता रहा
प्यार के स्वीकार का ।
स्वार्थहीन समर्पण मैंने
हर ख़ुशबू , हर सन्तुष्टि के हाथों भेजे
लेकिन तुम फूल देखते रहे
कामना करते रहे
और मैं इकरार करता रहा
इंतजार करता रहा
प्यार के स्वीकार का ।
संदेश भरे नमस्कार मैंने
हर आत्मा , हर धड़कन के हाथों भेजे
लेकिन तुम शरीर निहारते रहे
दिलों से खेलते रहे
और मैं इकरार करता रहा
इंतजार करता रहा
प्यार के स्वीकार का ।
दीदार की हसरतें मैंने
हर रोशनी , हर क्षण के हाथों भेजी
लेकिन तुम दीप देखते रहे
समय से पूछते रहे
और मैं इकरार करता रहा
इंतजार करता रहा
प्यार के स्वीकार का ।
आशा भरे विचार मैंने
हर अनुभूति, हर तपन के हाथों भेजे
लेकिन तुम सुख - ख़ुमार में रहे
आग सेकते रहे
और मैं इकरार करता रहा
इंतजार करता रहा
प्यार के स्वीकार का ।
डा. प्रमोद कुमार
Email: drpk1956@gmail.com
drpramod.kumar@yahoo.in
और मैं इकरार करता रहा
इंतज़ार करता रहा
प्यार के स्वीकार का ।
प्यार के इकरार मैंने
हर चाँदनी , हर किरन के हाथों भेजे
लेकिन तुम चाँद देखते रहे
सूरज निहारते रहे
और मैं इकरार करता रहा
इंतजार करता रहा
प्यार के स्वीकार का ।
जीवन भरे अहसास मैंने
हर धुन , हर शब्द के हाथों भेजे
लेकिन तुम साज देखते रहे
आवाज सुनते रहे
और मैं इकरार करता रहा
इंतजार करता रहा
प्यार के स्वीकार का ।
स्वार्थहीन समर्पण मैंने
हर ख़ुशबू , हर सन्तुष्टि के हाथों भेजे
लेकिन तुम फूल देखते रहे
कामना करते रहे
और मैं इकरार करता रहा
इंतजार करता रहा
प्यार के स्वीकार का ।
संदेश भरे नमस्कार मैंने
हर आत्मा , हर धड़कन के हाथों भेजे
लेकिन तुम शरीर निहारते रहे
दिलों से खेलते रहे
और मैं इकरार करता रहा
इंतजार करता रहा
प्यार के स्वीकार का ।
दीदार की हसरतें मैंने
हर रोशनी , हर क्षण के हाथों भेजी
लेकिन तुम दीप देखते रहे
समय से पूछते रहे
और मैं इकरार करता रहा
इंतजार करता रहा
प्यार के स्वीकार का ।
आशा भरे विचार मैंने
हर अनुभूति, हर तपन के हाथों भेजे
लेकिन तुम सुख - ख़ुमार में रहे
आग सेकते रहे
और मैं इकरार करता रहा
इंतजार करता रहा
प्यार के स्वीकार का ।
डा. प्रमोद कुमार
Email: drpk1956@gmail.com
drpramod.kumar@yahoo.in
ढूँढ़ता रहता हूँ: डा. प्रमोद कुमार
अँधेरी रातों में तुम्हें
अनन्त फैले अंतरिक्ष में ढूँढ़ता रहता हूँ
और तुम दूर कहीं नीले पर्दे से
छुपकर मेरी नाकामयाबी का
तमाशा देखती रहती हो
और ये तारे मेरी विफलता पर
खिलखिला रहे होते हैं
चाँदनी रातों में तुम्हें
शांत नीली झील में ढूंढ़ता रहता हूँ
और तुम नीचे कहीं गहरे पानी से
छुपकर मेरी असफलता का
तमाशा देखती रहती हो
और ये चाँद मेरी बेबसी पर
मुस्कारा रहा होता है
ढलती शामों में तुम्हें
विशाल फैले समन्दर में ढूंढ़ता रहता हूँ
और तुम नीचे गहरे तल से
छुपकर मेरे उदास भावों का
मंज़र देखती रहती हो ।
और ये मौजे मेरी परेशानी पर
हँस रही होती है ।
डा. प्रमोद कुमार
Email: drpk1956@gmail.com
drpramod.kumar@yahoo.in
अँधेरी रातों में तुम्हें
अनन्त फैले अंतरिक्ष में ढूँढ़ता रहता हूँ
और तुम दूर कहीं नीले पर्दे से
छुपकर मेरी नाकामयाबी का
तमाशा देखती रहती हो
और ये तारे मेरी विफलता पर
खिलखिला रहे होते हैं
चाँदनी रातों में तुम्हें
शांत नीली झील में ढूंढ़ता रहता हूँ
और तुम नीचे कहीं गहरे पानी से
छुपकर मेरी असफलता का
तमाशा देखती रहती हो
और ये चाँद मेरी बेबसी पर
मुस्कारा रहा होता है
ढलती शामों में तुम्हें
विशाल फैले समन्दर में ढूंढ़ता रहता हूँ
और तुम नीचे गहरे तल से
छुपकर मेरे उदास भावों का
मंज़र देखती रहती हो ।
और ये मौजे मेरी परेशानी पर
हँस रही होती है ।
डा. प्रमोद कुमार
Email: drpk1956@gmail.com
drpramod.kumar@yahoo.in
मेरी तनहाई: डा. प्रमोद कुमार
जीवन मेरा ध्रुव की
लम्बी रात-सी
तन्हा , काली और अकेली
जिसमें बर्फीली हवाएँ
साँथ - साँथ दौड़ती रहती हैं
कहानी बोलती रहती हैं
तुम्हारी बेवफ़ाई की ।
और चमचमाते तारे
टिमटिम हँसते रहते हैं
बातें करते रहते हैं
मेरी तन्हाई की ।
डा. प्रमोद कुमार
Email: drpk1956@gmail.com
drpramod.kumar@yahoo.in
जीवन मेरा ध्रुव की
लम्बी रात-सी
तन्हा , काली और अकेली
जिसमें बर्फीली हवाएँ
साँथ - साँथ दौड़ती रहती हैं
कहानी बोलती रहती हैं
तुम्हारी बेवफ़ाई की ।
और चमचमाते तारे
टिमटिम हँसते रहते हैं
बातें करते रहते हैं
मेरी तन्हाई की ।
डा. प्रमोद कुमार
Email: drpk1956@gmail.com
drpramod.kumar@yahoo.in
भटकाव-डा. प्रमोद कुमार
तुम मेरी सांसों में महकती हो
मैं ये मानता हूँ
पर क्यों ये सांसें
तुम्हारी सांसों में
घुलने को तरसती हैं
ये मैं जानता नहीं
तुम मेरे मन में बसी हो
ये मैं मानता हूँ
पर क्यों ये हाथ
तुम्हारे कोमल स्पर्श
पाने को मचलते हैं
ये मैं जानता नहीं
तुम मेरे शब्दों में चहकती हो
ये मैं मानता हूँ
पर क्यों ये कर्ण
तुम्हारी बातों को
सुनने को तरसते हैं
ये मैं जानता नहीं
तुम मेरे दिल घर कर गई हो
ये मैं मानता हूँ
पर क्यों ये आँखें
तुम्हारे चेहरे को
देखने को भटकती हैं
ये मैं जानता नहीं
तुम मेरे हर कतरे में बहती हो
ये मैं मानता हूँ
पर क्यों ये होठ
तुम्हारे मुख को
चूमने के लिए तरसते हैं
ये मैं जानता नहीं
तुम मुझमें हो मैं तुझमें हूँ
मैं ये मानता हूँ
पर क्यों ये मन
तुम्हे हमेशा
मिलने को भटकता है
ये मैं जानता नहीं ।
डा. प्रमोद कुमार
Email: drpk1956@gmail.com
drpramod.kumar@yahoo.in
तुम मेरी सांसों में महकती हो
मैं ये मानता हूँ
पर क्यों ये सांसें
तुम्हारी सांसों में
घुलने को तरसती हैं
ये मैं जानता नहीं
तुम मेरे मन में बसी हो
ये मैं मानता हूँ
पर क्यों ये हाथ
तुम्हारे कोमल स्पर्श
पाने को मचलते हैं
ये मैं जानता नहीं
तुम मेरे शब्दों में चहकती हो
ये मैं मानता हूँ
पर क्यों ये कर्ण
तुम्हारी बातों को
सुनने को तरसते हैं
ये मैं जानता नहीं
तुम मेरे दिल घर कर गई हो
ये मैं मानता हूँ
पर क्यों ये आँखें
तुम्हारे चेहरे को
देखने को भटकती हैं
ये मैं जानता नहीं
तुम मेरे हर कतरे में बहती हो
ये मैं मानता हूँ
पर क्यों ये होठ
तुम्हारे मुख को
चूमने के लिए तरसते हैं
ये मैं जानता नहीं
तुम मुझमें हो मैं तुझमें हूँ
मैं ये मानता हूँ
पर क्यों ये मन
तुम्हे हमेशा
मिलने को भटकता है
ये मैं जानता नहीं ।
डा. प्रमोद कुमार
Email: drpk1956@gmail.com
drpramod.kumar@yahoo.in
तृप्ति:डा. प्रमोद कुमार
चमेली यहाँ सुन्दर है
उसकी खुशबू भी लुभावनी है
पर वह भौंरे को बुलाती है
मैं उसे कैसे सूँघ सकता हूँ ?
आसमां यहाँ नीला है
उसमें सतरंगी इन्द्रधनुष भी है
पर वह धरा को लुभाता है
मैं उसे कैसे देख सकता हूँ ?
हवा यहाँ शीतल है
उसमें तीखी ठंड भी है
पर वह बादलों के साथ बहती है
मैं उसे कैसे छू सकता हूँ ?
कोयल यहाँ काली है
सुन्दर गानें भी गाती है
पर ` उसका ' नाम गुनगुनाती है
मैं उसे कैसे सुन सकता हूँ ?
यहाँ फल स्वादिष्ट है
उनमें मिठास भी है
पर ये मेरे लिए नहीं है
मैं इन्हें कैसे चख सकता हूँ ?
वह संवेदनशील भावुक
चेहरे की आकर्षक सुन्दरता,
वह जीवनभरी सांसों की
लुभावनी नर्मी,
वह रेशमी स्पर्श,
वह लयपूर्ण शब्दों के
मधुर गीत,
वह मीठे होठों का
प्राकृतिक स्वाद
क्या मैं यहाँ
महसूस कर सकता हूँ ?
------------------------------------------------------------
डा. प्रमोद कुमार
Email: drpk1956@gmail.com
drpramod.kumar@yahoo.in
चमेली यहाँ सुन्दर है
उसकी खुशबू भी लुभावनी है
पर वह भौंरे को बुलाती है
मैं उसे कैसे सूँघ सकता हूँ ?
आसमां यहाँ नीला है
उसमें सतरंगी इन्द्रधनुष भी है
पर वह धरा को लुभाता है
मैं उसे कैसे देख सकता हूँ ?
हवा यहाँ शीतल है
उसमें तीखी ठंड भी है
पर वह बादलों के साथ बहती है
मैं उसे कैसे छू सकता हूँ ?
कोयल यहाँ काली है
सुन्दर गानें भी गाती है
पर ` उसका ' नाम गुनगुनाती है
मैं उसे कैसे सुन सकता हूँ ?
यहाँ फल स्वादिष्ट है
उनमें मिठास भी है
पर ये मेरे लिए नहीं है
मैं इन्हें कैसे चख सकता हूँ ?
वह संवेदनशील भावुक
चेहरे की आकर्षक सुन्दरता,
वह जीवनभरी सांसों की
लुभावनी नर्मी,
वह रेशमी स्पर्श,
वह लयपूर्ण शब्दों के
मधुर गीत,
वह मीठे होठों का
प्राकृतिक स्वाद
क्या मैं यहाँ
महसूस कर सकता हूँ ?
------------------------------------------------------------
डा. प्रमोद कुमार
Email: drpk1956@gmail.com
drpramod.kumar@yahoo.in
ध्येयपूर्ण रास्ते-डा. प्रमोद कुमार
रात यहाँ चुप-सी है
शांत और नीरव भी
पर उत्तेजक नहीं
दोस्त यहाँ अच्छ़े हैं
मनोहर और सहयोगी भी
पर प्रेमी नहीं
शब्द यहाँ प्रिय हैं
संवेदनशील और भावुक भी
पर अर्थपूर्ण नहीं
चंद्र-किरन यहाँ चमकीली है
सुन्दर और लुभावनी भी
पर शीतल नही
रास्ते यहाँ लम्बे हैं
आरामदेह और सुरक्षित भी
पर ध्येयपूर्ण नहीं
एक तुम्हारा साथ
वो प्रेमभरी बातें
और हाथों में हाथ
रात को ही उत्तेजक
नहीं बना देता
हर शब्द अर्थपूर्ण
बन जाते हैं
और ये जीवन के
लम्बे रास्ते
खुद पे खुद
ध्येयपूर्ण बन जाते हैं ।
-----------------------------------------------------------------------------
डा. प्रमोद कुमार
Email: drpk1956@gmail.com
drpramod.kumar@yahoo.in
रात यहाँ चुप-सी है
शांत और नीरव भी
पर उत्तेजक नहीं
दोस्त यहाँ अच्छ़े हैं
मनोहर और सहयोगी भी
पर प्रेमी नहीं
शब्द यहाँ प्रिय हैं
संवेदनशील और भावुक भी
पर अर्थपूर्ण नहीं
चंद्र-किरन यहाँ चमकीली है
सुन्दर और लुभावनी भी
पर शीतल नही
रास्ते यहाँ लम्बे हैं
आरामदेह और सुरक्षित भी
पर ध्येयपूर्ण नहीं
एक तुम्हारा साथ
वो प्रेमभरी बातें
और हाथों में हाथ
रात को ही उत्तेजक
नहीं बना देता
हर शब्द अर्थपूर्ण
बन जाते हैं
और ये जीवन के
लम्बे रास्ते
खुद पे खुद
ध्येयपूर्ण बन जाते हैं ।
-----------------------------------------------------------------------------
डा. प्रमोद कुमार
Email: drpk1956@gmail.com
drpramod.kumar@yahoo.in
जलहीन बदली:डा. प्रमोद कुमार
आश, आस - पास आती रही
रात आती रही जाती रही ,
चितवन मेरा सूना था पर
जिंदगी यूँ ही गाती रही ।
ये नही कि चमकी नहीं बिजली
और बादलों का शोर भी था ,
पर रोज़ मेरे सूखे बन से
मस्त पवन यू ही जाती रही ।
ये नहीं कि उमड़ी नही घटा
पक्षियों का कलरव भी था,
पर वो जलहीन बदली थी
जो रोज़ मड़राती रही ।
आश, आस - पास आती रही
रात आती रही जाती रही,
चितवन मेरा सूना था पर
जिंदगी यूँ ही गाती रही ।
-------------------------------------------------------------------
डा. प्रमोद कुमार
Email: drpk1956@gmail.com
drpramod.kumar@yahoo.in
आश, आस - पास आती रही
रात आती रही जाती रही ,
चितवन मेरा सूना था पर
जिंदगी यूँ ही गाती रही ।
ये नही कि चमकी नहीं बिजली
और बादलों का शोर भी था ,
पर रोज़ मेरे सूखे बन से
मस्त पवन यू ही जाती रही ।
ये नहीं कि उमड़ी नही घटा
पक्षियों का कलरव भी था,
पर वो जलहीन बदली थी
जो रोज़ मड़राती रही ।
आश, आस - पास आती रही
रात आती रही जाती रही,
चितवन मेरा सूना था पर
जिंदगी यूँ ही गाती रही ।
-------------------------------------------------------------------
डा. प्रमोद कुमार
Email: drpk1956@gmail.com
drpramod.kumar@yahoo.in
रोशनी के अक्षर-डा. प्रमोद कुमार
चांदनी एक बार फिर तुम
रोशनी कर जाओ न,
इस अंधेरी रात में तुम
उजाले भर जाओ न ।
ये रात का अंधेरा
फिर मिटा न डाले,
उन रोशनी लेखों को
जो प्यार से लिखे थे ।
इस अशांत-मन को तुम
आ तृप्त कर जाओ न,
चाँदनी एक बार फिर तुम
रौशनी कर जाओ न ।
मेरे रास्ते अंधेरे
विरान सी डगर है,
कही भटक न जाऊँ
बिन रौशनी के तेरे
इन पथ के संकटों को
आके तुम हर जाओ न,
चाँदनी एक बार फिर तुम
रौशनी कर जाओ न ।
------------------------------------------------------------
डा. प्रमोद कुमार
Email: drpk1956@gmail.com
drpramod.kumar@yahoo.in
चांदनी एक बार फिर तुम
रोशनी कर जाओ न,
इस अंधेरी रात में तुम
उजाले भर जाओ न ।
ये रात का अंधेरा
फिर मिटा न डाले,
उन रोशनी लेखों को
जो प्यार से लिखे थे ।
इस अशांत-मन को तुम
आ तृप्त कर जाओ न,
चाँदनी एक बार फिर तुम
रौशनी कर जाओ न ।
मेरे रास्ते अंधेरे
विरान सी डगर है,
कही भटक न जाऊँ
बिन रौशनी के तेरे
इन पथ के संकटों को
आके तुम हर जाओ न,
चाँदनी एक बार फिर तुम
रौशनी कर जाओ न ।
------------------------------------------------------------
डा. प्रमोद कुमार
Email: drpk1956@gmail.com
drpramod.kumar@yahoo.in
लहरों की बिखरन:डा. प्रमोद कुमार
दु:खी मन मेरे मत रह चंचल
चंचलता में खोया जीवन,
इन दो नयनों की धाराओं में
क्यों बहा दिया जीवन का स्वप्न ?
दु:खी मन मेरे . . . . . . . .
खड़ा किनारे क्यों तकता अब
लहरों की लुप्त गहन-बिखरन,
अब फिर न बैचेन बना तू
अन्धकारमय रात्रि कोमल क्षण
दु:खी मन मेरे . . . . . . . .
काली छाया घोर निशा में
उज्जवलता प्रकाशित कर,
इस बुझ्टा दीप में फिर से
कर दे नई दीप्ति का जन्म
दु:खी मन मेरे . . . . . . . .
न बैठ यहॉ यासू बहा तू
मिल जा नई धारा के संग,
मन चंचलता त्याग बना अब
कुछ और नये जीवन के स्वप्न
दु:खी मन मेरे…..
दु:खी मन मेरे मत रह चंचल
चंचलता में खोया जीवन,
इन दो नयनों की धाराओं में
क्यों बहा दिया जीवन का स्वप्न ?
-----------------------------------------
डा. प्रमोद कुमार
Email: drpk1956@gmail.com
drpramod.kumar@yahoo.in
दु:खी मन मेरे मत रह चंचल
चंचलता में खोया जीवन,
इन दो नयनों की धाराओं में
क्यों बहा दिया जीवन का स्वप्न ?
दु:खी मन मेरे . . . . . . . .
खड़ा किनारे क्यों तकता अब
लहरों की लुप्त गहन-बिखरन,
अब फिर न बैचेन बना तू
अन्धकारमय रात्रि कोमल क्षण
दु:खी मन मेरे . . . . . . . .
काली छाया घोर निशा में
उज्जवलता प्रकाशित कर,
इस बुझ्टा दीप में फिर से
कर दे नई दीप्ति का जन्म
दु:खी मन मेरे . . . . . . . .
न बैठ यहॉ यासू बहा तू
मिल जा नई धारा के संग,
मन चंचलता त्याग बना अब
कुछ और नये जीवन के स्वप्न
दु:खी मन मेरे…..
दु:खी मन मेरे मत रह चंचल
चंचलता में खोया जीवन,
इन दो नयनों की धाराओं में
क्यों बहा दिया जीवन का स्वप्न ?
-----------------------------------------
डा. प्रमोद कुमार
Email: drpk1956@gmail.com
drpramod.kumar@yahoo.in
दृढ़ तुम बढ़े चलो-डा. प्रमोद कुमार
इन्सानियत की राह पर
ज़ज्बा-ए-ईमान लेकर,
दृढ़ तुम बढ़े चलो
दृढ़ तुम बढ़े चलो ।
हर उन अक्षर को मिटा दो
जो नफ़रत फैलाते हैं,
हर उस शोले को बुझा दो
जो घर में आग लगाते हैं ।
प्यार की मशाल लेकर
इन्सानियत की राह पर,
ज़ज्बा-ए-ईमान लेकर
दृढ़ तुम बढ़े चलो ।
हर उस अंधेरे को मिटा दो
जो मानव को भटकाते हैं,
राह के हर दीप जला दो
जो सच की राह की दिखाते हैं ।
इन्साफ हर हाल में कर
इन्सानियत की राह पर,
ज़ज्बा-ए-ईमान लेकर
दृढ़ तुम बढ़े चलो ।
-----------------------------
डा. प्रमोद कुमार
Email: drpk1956@gmail.com
drpramod.kumar@yahoo.in
इन्सानियत की राह पर
ज़ज्बा-ए-ईमान लेकर,
दृढ़ तुम बढ़े चलो
दृढ़ तुम बढ़े चलो ।
हर उन अक्षर को मिटा दो
जो नफ़रत फैलाते हैं,
हर उस शोले को बुझा दो
जो घर में आग लगाते हैं ।
प्यार की मशाल लेकर
इन्सानियत की राह पर,
ज़ज्बा-ए-ईमान लेकर
दृढ़ तुम बढ़े चलो ।
हर उस अंधेरे को मिटा दो
जो मानव को भटकाते हैं,
राह के हर दीप जला दो
जो सच की राह की दिखाते हैं ।
इन्साफ हर हाल में कर
इन्सानियत की राह पर,
ज़ज्बा-ए-ईमान लेकर
दृढ़ तुम बढ़े चलो ।
-----------------------------
डा. प्रमोद कुमार
Email: drpk1956@gmail.com
drpramod.kumar@yahoo.in
तुम-डा. प्रमोद कुमार
मैं ह्रदय का प्यार हूँ
तुम प्यार का अहसास हो,
पहला पहला उपजा मन में
खुशी का उल्लास हो
तुम वीणा के तार हो
मैं साज़ की आवाज हूँ,
तुम धरा मैं चन्द्र तेरा
तुम सुधा मैं प्यास हूँ
तुम सुबह की लालिमा हो
मैं उदय होता रवि,
तुम हो पूजा मैं पूजारी
काश की तुम आश हो
तुम गुलों की हो महक
मैं बहती हुई हवा,
कवि की तुम कल्पना हो
एक हसीन ख्वाब हो
तुम नदी मैं तीर तेरा
जान तुम मैं शरीर तेरा,
मैं महा-संगीत के स्वर
तुम उन्हीं का राग हो
डा. प्रमोद कुमार
Email: drpk1956@gmail.com
drpramod.kumar@yahoo.in
मैं ह्रदय का प्यार हूँ
तुम प्यार का अहसास हो,
पहला पहला उपजा मन में
खुशी का उल्लास हो
तुम वीणा के तार हो
मैं साज़ की आवाज हूँ,
तुम धरा मैं चन्द्र तेरा
तुम सुधा मैं प्यास हूँ
तुम सुबह की लालिमा हो
मैं उदय होता रवि,
तुम हो पूजा मैं पूजारी
काश की तुम आश हो
तुम गुलों की हो महक
मैं बहती हुई हवा,
कवि की तुम कल्पना हो
एक हसीन ख्वाब हो
तुम नदी मैं तीर तेरा
जान तुम मैं शरीर तेरा,
मैं महा-संगीत के स्वर
तुम उन्हीं का राग हो
डा. प्रमोद कुमार
Email: drpk1956@gmail.com
drpramod.kumar@yahoo.in
Sunday, March 20, 2011
तेरी - मेरी दुनिया-डा. प्रमोद कुमार
मेरी दुनिया
जिसमें ____
विचारहीन बाते हैं
चाँदहीन रातें हैं
व्यवहारहीन रिश्ते हैं
चेहरेहीन बसते हैं
लहरहीन समन्दर हैं
चमकहीन प्रभाकर हैं
खुशबूहीन चमेली हैं
जिंदगी अकेली हैं
प्यार की अनिच्छा है
और न कोई शिक्षा है
न भूल है न कबूल
न भक्ति है न शक्ति
न सच है न है झूठ
न पैसा न है लूट
लेकिन ,
तेरी दुनिया से अच्छी है
जिसमें ____
झूठ के विचार हैं
मक्कारी का व्यवहार हैं
चेहरे पर चेहरे हैं
सच पर पेहरे हैं
रिश्ते हैं नाते हैं
स्वार्थ भरी बातें हैं
प्यार एक व्यापार हैं
दिखावटी व्यवहार हैं
का$ाज के फूल हैं
सच्चाई एक भूल हैं
भौतिक सुख ही मूल हैं
पैसा बिन सब शूल हैं
ईमानदारी एक `आह' हैं
बेवफ़ाई एक राह है
---------------------
2. देव
मैं कायर था
इसलिए तुम्हें
चाहता रहा , बुलाता रहा
क्योंकि मैं व्यवस्था से
लड़ नहीं सकता था
पर हां समझौता कर सकता था ।
मैं स्वार्थी था
इसलिए तुम्हें
चाहता रहा , बुलाता रहा
क्योंकि मैं किसी को
कुछ दे नहीं सकता था
पर हां ले जरूर सकता था ।
मैं भेागी था
इसलिए तुम्हें
चाहता रहा, बुलाता रहा
क्योंकि मैं कोई निर्माण
नही कर सकता था
पर हां ध्वंस जरूर कर सकता था ।
मेरी दुनिया
जिसमें ____
विचारहीन बाते हैं
चाँदहीन रातें हैं
व्यवहारहीन रिश्ते हैं
चेहरेहीन बसते हैं
लहरहीन समन्दर हैं
चमकहीन प्रभाकर हैं
खुशबूहीन चमेली हैं
जिंदगी अकेली हैं
प्यार की अनिच्छा है
और न कोई शिक्षा है
न भूल है न कबूल
न भक्ति है न शक्ति
न सच है न है झूठ
न पैसा न है लूट
लेकिन ,
तेरी दुनिया से अच्छी है
जिसमें ____
झूठ के विचार हैं
मक्कारी का व्यवहार हैं
चेहरे पर चेहरे हैं
सच पर पेहरे हैं
रिश्ते हैं नाते हैं
स्वार्थ भरी बातें हैं
प्यार एक व्यापार हैं
दिखावटी व्यवहार हैं
का$ाज के फूल हैं
सच्चाई एक भूल हैं
भौतिक सुख ही मूल हैं
पैसा बिन सब शूल हैं
ईमानदारी एक `आह' हैं
बेवफ़ाई एक राह है
---------------------
2. देव
मैं कायर था
इसलिए तुम्हें
चाहता रहा , बुलाता रहा
क्योंकि मैं व्यवस्था से
लड़ नहीं सकता था
पर हां समझौता कर सकता था ।
मैं स्वार्थी था
इसलिए तुम्हें
चाहता रहा , बुलाता रहा
क्योंकि मैं किसी को
कुछ दे नहीं सकता था
पर हां ले जरूर सकता था ।
मैं भेागी था
इसलिए तुम्हें
चाहता रहा, बुलाता रहा
क्योंकि मैं कोई निर्माण
नही कर सकता था
पर हां ध्वंस जरूर कर सकता था ।
Sunday, September 20, 2009
सावन-फुहार-डा. प्रमोद कुमार
तुम कहती थीं कि तुम
एक सावन-फुहार हो
जो केवल मेरी बगिया में
ही बरसती है
लेकिन , कितने सावन आये
चले गए
और तुम मदमस्त हवा के साथ
दूर कहीं जाती रहीं
गहरी काली घटा ले साथ
पानी बरसाती रहीं
और मेरी बगिया के
हर फूल सूख गये
हर कली कराह उठी
पेड ठूंठ बन गये
हर डाली मुरझा उठी
और मैं खड़ा-खड़ा
फूलों की दर्दभरी सूख को
पेड़ों की मूकभरी भूख को
आशा व विश्वास के विनाश को
देखता रहा ।
अन्धा
मैं जन्मजात अन्धा
जो स्वप्न में भी
तुम्हें देख नहीं सकता
बस सुन सकता हूँ
उस पायल की झनकार को
जो मेरी आँखों के सफेद पर्दे पर
झनझनाती रहती है
गाती रहती है ।
मैं जन्मजात अन्धा
जो जागे हुए भी
तुम्हें देख नहीं सकता
बस अनुभव कर सकता हूँ
उस साँसों की गर्मी को
जो मेरी आँखों की पलकों को
नर्माती रहती है
सहलाती रहती है ।
मैं जन्मजात अन्धा
जो दिन में भी
तुम्हें देख नहीं सकता
बस सूँध सकता हूँ
उस बदन की महक को
जो मेरी आँखों की पुतली को
महकाती रहती है
चहकाती रहती है ।
मैं जन्मजात अन्धा
जो रोशनी में भी
तुम्हें देख नहीं सकता
बस चख सकता हूँ
उन होठों की मिठास को
जो मेरे आँखों के समुद्र में
घुलती रहती है
मिलती रहती हैं ।
नाकामयाबी
जब सूरज डूबने लगता है
और रोशनी कम होने लगती है
एक साँझ का तारा
मेरे खुले दरवाजे से
टिमटिमाता हुआ नज़र आता है
और मैं उसे निहारने लगता हूँ
कुछ ही समय में धीरे-धीरे
यह तारा भी मेरे आँखों से
औझल हो जाता है
और अँधेरी रात में तन्हां
मैं शून्य में कुछ ढूँढने लगता हॅूं
मैं छत पर जाता हूँ
और नीले आकाश में
जब भी देखता हूँ तो
अनगिनत तारे जोर-जोर से
हँस रहे होते हैं
मेरी नाकामयाबी पर ।
योग्यता
शाम को दिनकर
सारे दिन के सफर से
थका - थका लेकिन मुस्कराता हुआ
अस्ताचल की बाहों में चला जाता है
संध्या को
साँझ का तारा
कुछ देर लुभाता है
और अस्तांचल के आँचल में
खो जाता है
रात को चाँद
आता है
कुछ देर चमकता है
और धीरे - धीरे अस्तांचल की
गोद में सो जाता है
मैं अपनी जीवन-संध्या में
अस्तांचल की बाहों में
जाने के लिये
आँचल में खो जाने के लिये
गोद में सो जाने के लिये
मीलों चलता रहा
लेकिन ----
अस्तांचल दूर होता रहा
और यही कहता रहा कि
ये बाहें , ये आँचल और ये गोद
दिनकर , तारे व चाँद के लिए है
और तुम न दिनकर हो , न हो तारा
और न ही तुम चाँद हो ।
अमावसी संसार
इस अमावसी संसार के
एक मिट्टी के घर में
तन्हाई बसती है ।
हर दिन गुल - महक
तन्हाई का साथ निभाने
दूर कहीं से आ जाती है
तन - मन को महका जाती है ।
हर रात हवा का झोंका
तन्हाई से बातें करने
दूर कहीं से आ जाता है
तन - मन को चहका जाता है ।
और मैं अकेला
इस अन्धे संसार में
उस घर की दीवारों के
किसी कोने में
तन्हा बैठा
यह सब निहारता
रहता हूँ ।
जीवन - नौका
तुम एक बहती नदी
जिसमें मैंने अपनी नौका उतार दी
और तुम तूफानी हवाओं
का साथ देने लगी
तेज - तेज बहने लगी
मिलने के लिए
समुद्र से
कुछ देर बाद मैंने
अपनी नौका को
विशाल समुद्र के
गहरे तल पर डूबा , पाया
जहाँ कोई किनारा नहीं
कुछ है तो बस केवल तन्हाई
मैं अकेला गहरे पानी में
पड़ा यही सोचना रहा कि
दोष नदी का नहीं
क्योंकि उसकी मंजिल तो समुद्र थी
न ही दोष हवाओं का है
क्योंकि उनकी फ़ितरत तो हबूबी थी
दोष तो मेरा है जिसने अपनी
जीवन - नौका शीतल,स्वच्छ,गहरी,
शांत , झील में नहीं बल्कि एक बहती नदी
में उतार दी ।
तुम कहती थीं कि तुम
एक सावन-फुहार हो
जो केवल मेरी बगिया में
ही बरसती है
लेकिन , कितने सावन आये
चले गए
और तुम मदमस्त हवा के साथ
दूर कहीं जाती रहीं
गहरी काली घटा ले साथ
पानी बरसाती रहीं
और मेरी बगिया के
हर फूल सूख गये
हर कली कराह उठी
पेड ठूंठ बन गये
हर डाली मुरझा उठी
और मैं खड़ा-खड़ा
फूलों की दर्दभरी सूख को
पेड़ों की मूकभरी भूख को
आशा व विश्वास के विनाश को
देखता रहा ।
अन्धा
मैं जन्मजात अन्धा
जो स्वप्न में भी
तुम्हें देख नहीं सकता
बस सुन सकता हूँ
उस पायल की झनकार को
जो मेरी आँखों के सफेद पर्दे पर
झनझनाती रहती है
गाती रहती है ।
मैं जन्मजात अन्धा
जो जागे हुए भी
तुम्हें देख नहीं सकता
बस अनुभव कर सकता हूँ
उस साँसों की गर्मी को
जो मेरी आँखों की पलकों को
नर्माती रहती है
सहलाती रहती है ।
मैं जन्मजात अन्धा
जो दिन में भी
तुम्हें देख नहीं सकता
बस सूँध सकता हूँ
उस बदन की महक को
जो मेरी आँखों की पुतली को
महकाती रहती है
चहकाती रहती है ।
मैं जन्मजात अन्धा
जो रोशनी में भी
तुम्हें देख नहीं सकता
बस चख सकता हूँ
उन होठों की मिठास को
जो मेरे आँखों के समुद्र में
घुलती रहती है
मिलती रहती हैं ।
नाकामयाबी
जब सूरज डूबने लगता है
और रोशनी कम होने लगती है
एक साँझ का तारा
मेरे खुले दरवाजे से
टिमटिमाता हुआ नज़र आता है
और मैं उसे निहारने लगता हूँ
कुछ ही समय में धीरे-धीरे
यह तारा भी मेरे आँखों से
औझल हो जाता है
और अँधेरी रात में तन्हां
मैं शून्य में कुछ ढूँढने लगता हॅूं
मैं छत पर जाता हूँ
और नीले आकाश में
जब भी देखता हूँ तो
अनगिनत तारे जोर-जोर से
हँस रहे होते हैं
मेरी नाकामयाबी पर ।
योग्यता
शाम को दिनकर
सारे दिन के सफर से
थका - थका लेकिन मुस्कराता हुआ
अस्ताचल की बाहों में चला जाता है
संध्या को
साँझ का तारा
कुछ देर लुभाता है
और अस्तांचल के आँचल में
खो जाता है
रात को चाँद
आता है
कुछ देर चमकता है
और धीरे - धीरे अस्तांचल की
गोद में सो जाता है
मैं अपनी जीवन-संध्या में
अस्तांचल की बाहों में
जाने के लिये
आँचल में खो जाने के लिये
गोद में सो जाने के लिये
मीलों चलता रहा
लेकिन ----
अस्तांचल दूर होता रहा
और यही कहता रहा कि
ये बाहें , ये आँचल और ये गोद
दिनकर , तारे व चाँद के लिए है
और तुम न दिनकर हो , न हो तारा
और न ही तुम चाँद हो ।
अमावसी संसार
इस अमावसी संसार के
एक मिट्टी के घर में
तन्हाई बसती है ।
हर दिन गुल - महक
तन्हाई का साथ निभाने
दूर कहीं से आ जाती है
तन - मन को महका जाती है ।
हर रात हवा का झोंका
तन्हाई से बातें करने
दूर कहीं से आ जाता है
तन - मन को चहका जाता है ।
और मैं अकेला
इस अन्धे संसार में
उस घर की दीवारों के
किसी कोने में
तन्हा बैठा
यह सब निहारता
रहता हूँ ।
जीवन - नौका
तुम एक बहती नदी
जिसमें मैंने अपनी नौका उतार दी
और तुम तूफानी हवाओं
का साथ देने लगी
तेज - तेज बहने लगी
मिलने के लिए
समुद्र से
कुछ देर बाद मैंने
अपनी नौका को
विशाल समुद्र के
गहरे तल पर डूबा , पाया
जहाँ कोई किनारा नहीं
कुछ है तो बस केवल तन्हाई
मैं अकेला गहरे पानी में
पड़ा यही सोचना रहा कि
दोष नदी का नहीं
क्योंकि उसकी मंजिल तो समुद्र थी
न ही दोष हवाओं का है
क्योंकि उनकी फ़ितरत तो हबूबी थी
दोष तो मेरा है जिसने अपनी
जीवन - नौका शीतल,स्वच्छ,गहरी,
शांत , झील में नहीं बल्कि एक बहती नदी
में उतार दी ।
और तुम-डा. प्रमोद कुमार
मैंने अपने द्वार वर्षो खुले रखे
पहरों तुम्हारा इंतजार किया
और एक दिन अभाग्य ____
सच्चाई और ईमानदारी
का मुखौटा ओढे
प्यार का नाम लेकर
जीवन घर कर गया
और तुम ____
सायं को समुद्र की झूलती लहरों के साथ उठी
एक कोमल भावना सी
बन कर रह गये
जो मेरे दिल की हर धड़कन मे उछलती रहती है ।
सुबह को सूर्य की पहली किरन के साथ उठा
एक सुविचार सा
बन कर रह गये
जो मेरे मस्तिष्क की गहराई में उतरा रहता हैं ।
यौवन में पहले-पहले महसूस होने वाली
प्रथम अनुभूति सी
बनकर रह गये
जो मेरे खून के हर कतरे में बहती रहती हैं ।
Email: drpramod.kumar@yahoo.in
drpk1956@gmail.com
मैंने अपने द्वार वर्षो खुले रखे
पहरों तुम्हारा इंतजार किया
और एक दिन अभाग्य ____
सच्चाई और ईमानदारी
का मुखौटा ओढे
प्यार का नाम लेकर
जीवन घर कर गया
और तुम ____
सायं को समुद्र की झूलती लहरों के साथ उठी
एक कोमल भावना सी
बन कर रह गये
जो मेरे दिल की हर धड़कन मे उछलती रहती है ।
सुबह को सूर्य की पहली किरन के साथ उठा
एक सुविचार सा
बन कर रह गये
जो मेरे मस्तिष्क की गहराई में उतरा रहता हैं ।
यौवन में पहले-पहले महसूस होने वाली
प्रथम अनुभूति सी
बनकर रह गये
जो मेरे खून के हर कतरे में बहती रहती हैं ।
Email: drpramod.kumar@yahoo.in
drpk1956@gmail.com
अंधेरी रात-डा. प्रमोद कुमार
जीवन- सुनहरी शाम में तुम
अंधेरी रात से आते रहे
सूरज दूर छिपता रहा
तारे टिमटिमाते रहे
और चंद्रमा हँसता रहा ।
जीवन-हरे भरे वन में तुम
सूखे पतझड से आते रहे
मन मयूर रोता रहा
पागल पवन हँसती रही
और समय गुनगुनाता रहा ।
जीवन सुशांत नौका पर तुम
क्रूर तुफ़ान से छाते रहे
किनारा दूर होता रहा
मस्त मौजें गाती रही
और पानी तेज बहता रहा ।
------------
जीवन- सुनहरी शाम में तुम
अंधेरी रात से आते रहे
सूरज दूर छिपता रहा
तारे टिमटिमाते रहे
और चंद्रमा हँसता रहा ।
जीवन-हरे भरे वन में तुम
सूखे पतझड से आते रहे
मन मयूर रोता रहा
पागल पवन हँसती रही
और समय गुनगुनाता रहा ।
जीवन सुशांत नौका पर तुम
क्रूर तुफ़ान से छाते रहे
किनारा दूर होता रहा
मस्त मौजें गाती रही
और पानी तेज बहता रहा ।
------------
संतापी मन-डा. प्रमोद कुमार
ए तृप्ति !
जब भी मैंने तुम्हें
अपने ह€दय की गहराई
में देखा
तुम्हारी सुन्दर आँखों से गिरी
वो कुछ आँसूओं की बूँदें
जो मैंनें अपने रेशमी स्पर्श से
कभी प्यार और विश्वास के साथ
तुम्हारे गुलाबी गालों से
पौंछी थी
मेरे दिल को
दु:ख और संताप सें
घेरे रहती हैं ।
ए सन्तुष्टि !
जब भी मैंने तुम्हें
अपने विचारों की गहराई में
महसूस किया
वो कुछ शब्द
जो तुमने उस दिन
आसक्ति और लगाव के
साथ कहे थे
मुझे उस विशाल समुद्र
की गहराई में डूबों देते हैं
जो अनन्त यंत्रणाओं एवं वेदनाओं
से भरा रहता है ।
ए शान्ति !
जब भी मैंने तुम्हें
अपने अन्तरमन की गहराई में
अनुभव किया
तुम्हारे पराग की वह खुशबू
जो तुमने कभी मुझपर बिखरी थी
और मेरी हर साँस
और हर क्षण को
महकाया था
मुझे मेरे तन-मन कोपरेशान किए रहती हैं ।
ए तृप्ति !
जब भी मैंने तुम्हें
अपने ह€दय की गहराई
में देखा
तुम्हारी सुन्दर आँखों से गिरी
वो कुछ आँसूओं की बूँदें
जो मैंनें अपने रेशमी स्पर्श से
कभी प्यार और विश्वास के साथ
तुम्हारे गुलाबी गालों से
पौंछी थी
मेरे दिल को
दु:ख और संताप सें
घेरे रहती हैं ।
ए सन्तुष्टि !
जब भी मैंने तुम्हें
अपने विचारों की गहराई में
महसूस किया
वो कुछ शब्द
जो तुमने उस दिन
आसक्ति और लगाव के
साथ कहे थे
मुझे उस विशाल समुद्र
की गहराई में डूबों देते हैं
जो अनन्त यंत्रणाओं एवं वेदनाओं
से भरा रहता है ।
ए शान्ति !
जब भी मैंने तुम्हें
अपने अन्तरमन की गहराई में
अनुभव किया
तुम्हारे पराग की वह खुशबू
जो तुमने कभी मुझपर बिखरी थी
और मेरी हर साँस
और हर क्षण को
महकाया था
मुझे मेरे तन-मन कोपरेशान किए रहती हैं ।
धुँए का बादल-डा. प्रमोद कुमार
गवा बैठे तम्मना में जिनकी
एक उम्र इंतजार करके,
अरमानों के सूने घर में
हर आहट बैगानी निकली ।
कहते थे बस तुम्हें चाहते हैं
और कोई भी चाहत नहीं है,
झ्ूाठे वादे प्यार मौहब्बत
हर कस्में बेईमानी निकली ।
बिन संग तुम्हारे न जी सकेंगे
और हम न मर सकेंगे
हरेक चाल एक धौका
हर बात लाईमानी निकली ।
दिल ने जब नज़दीक से देखा
ये सूरत भी अनजानी निकली
कस्में वादे प्यार वफा सब
बातें जो बेईमानी निकली
साथी
खाली-खाली से जीवन को
तुमसा साथी नहीं मिलेगा ।
तेरे नयनों की गहराई में
एक प्यार भरा सागर देखा,
तेरे होठॅेंों की नरमाई में
एक अमृत का गागर देखा ।
प्यास भरे इस चित मन को
तुमसा साकी नहीं मिलेगा;
खाली खाली से जीवन को
तुमसा साथी नहीं मिलेगा ।।
तेरी प्यार भरी ऑखों में
अहसास भरा सपना देखा,
तेरी हर मुलाकातों में
चेहरा जो अपना देखा ।
नकली चेहरों की दुनिया में
तुम सा अपना नहीं मिलेगा,
खाली खाली से जीवन को
तुमसा साथी नहीं मिलेगा ।।
तेरी सॉसों की गरमाई में
सृजन होता जीवन देखा,
पलकों में तेरी छूपा हुआ
प्यार भरा मंजर देखा ।
जो सपनों को साकार बना दे
ऐसा साथी नहीं मिलेगा,
खाली खाली से जीवन को
तुमसा साथी नहीं मिलेगा ।।
कोमल से तेरे अंगों में
भीगा सा सावन देखा,
प्यार भरे तेरे मन में
वफ़ाओं भरा चितवन देखा ।
सूखे बन में फूल खिला दे
ऐसा मौसम नहीं मिलेगा;
खाली खाली से जीवन को
तुमसा साथी नहीं मिलेगा ।।
मेरे पथ के सूनेपन में
जीने का अहसास जगा दे,
तन्हां से इस जीवन में
अपनापन महसूस करा दें ।
जीवन नौका को इस तूफ़ा में
तुमसा मॉझी नहीं मिलेगा,
खाली खाली से जीवन को
तुमसा साथी नहीं मिलेगा ।।
जन्नत
जन्नत बनाना चाहते थे
इस धरा को प्यार से,
पर इसे, नफरत फैलाकर
दोज़ख़ बनाके रख दिया ।
निज स्वार्थपूर्ति के लिए
देव-धर्म की बातें करके,
कुछ लोभी मक्कारों ने इसे
नरक बना के रख दिया ।
ख़ुदा का नाम लेने वाले जो
मन में पाप लिए होते हैं,
रोज़ बदलते चेहरों ने इसको
कलुषित करके रख दिया ।
पाक रखना चाहते थे
हर बहती धारा को,
पर पापियों ने इसको
प्रदूषित करके रख दिया ।
मैं हूॅ औैर सब मेरा है
ऐसे कुछ शैतानों ने,
शोषण कर कर के इसको
दुषित करके रख दिया ।
सीधे-साधे लोगों से
निराधार बाते करके,
बेईमान लोगों ने इसको
घृणा से भरके रख दिया ।।
Email: drpramod.kumar@yahoo.in
गवा बैठे तम्मना में जिनकी
एक उम्र इंतजार करके,
अरमानों के सूने घर में
हर आहट बैगानी निकली ।
कहते थे बस तुम्हें चाहते हैं
और कोई भी चाहत नहीं है,
झ्ूाठे वादे प्यार मौहब्बत
हर कस्में बेईमानी निकली ।
बिन संग तुम्हारे न जी सकेंगे
और हम न मर सकेंगे
हरेक चाल एक धौका
हर बात लाईमानी निकली ।
दिल ने जब नज़दीक से देखा
ये सूरत भी अनजानी निकली
कस्में वादे प्यार वफा सब
बातें जो बेईमानी निकली
साथी
खाली-खाली से जीवन को
तुमसा साथी नहीं मिलेगा ।
तेरे नयनों की गहराई में
एक प्यार भरा सागर देखा,
तेरे होठॅेंों की नरमाई में
एक अमृत का गागर देखा ।
प्यास भरे इस चित मन को
तुमसा साकी नहीं मिलेगा;
खाली खाली से जीवन को
तुमसा साथी नहीं मिलेगा ।।
तेरी प्यार भरी ऑखों में
अहसास भरा सपना देखा,
तेरी हर मुलाकातों में
चेहरा जो अपना देखा ।
नकली चेहरों की दुनिया में
तुम सा अपना नहीं मिलेगा,
खाली खाली से जीवन को
तुमसा साथी नहीं मिलेगा ।।
तेरी सॉसों की गरमाई में
सृजन होता जीवन देखा,
पलकों में तेरी छूपा हुआ
प्यार भरा मंजर देखा ।
जो सपनों को साकार बना दे
ऐसा साथी नहीं मिलेगा,
खाली खाली से जीवन को
तुमसा साथी नहीं मिलेगा ।।
कोमल से तेरे अंगों में
भीगा सा सावन देखा,
प्यार भरे तेरे मन में
वफ़ाओं भरा चितवन देखा ।
सूखे बन में फूल खिला दे
ऐसा मौसम नहीं मिलेगा;
खाली खाली से जीवन को
तुमसा साथी नहीं मिलेगा ।।
मेरे पथ के सूनेपन में
जीने का अहसास जगा दे,
तन्हां से इस जीवन में
अपनापन महसूस करा दें ।
जीवन नौका को इस तूफ़ा में
तुमसा मॉझी नहीं मिलेगा,
खाली खाली से जीवन को
तुमसा साथी नहीं मिलेगा ।।
जन्नत
जन्नत बनाना चाहते थे
इस धरा को प्यार से,
पर इसे, नफरत फैलाकर
दोज़ख़ बनाके रख दिया ।
निज स्वार्थपूर्ति के लिए
देव-धर्म की बातें करके,
कुछ लोभी मक्कारों ने इसे
नरक बना के रख दिया ।
ख़ुदा का नाम लेने वाले जो
मन में पाप लिए होते हैं,
रोज़ बदलते चेहरों ने इसको
कलुषित करके रख दिया ।
पाक रखना चाहते थे
हर बहती धारा को,
पर पापियों ने इसको
प्रदूषित करके रख दिया ।
मैं हूॅ औैर सब मेरा है
ऐसे कुछ शैतानों ने,
शोषण कर कर के इसको
दुषित करके रख दिया ।
सीधे-साधे लोगों से
निराधार बाते करके,
बेईमान लोगों ने इसको
घृणा से भरके रख दिया ।।
Email: drpramod.kumar@yahoo.in
चॉद तुम आ जाओं न-डा. प्रमोद कुमार
चॉद तुम आ जाओ न ।
फूल की पंखुड़ियों की
सेज़ पर है जो पली,
मस्त पवन के साथ जो
खेलती हुई बड़ी,
पल्लवों के गीत में
संगीत सी है जो बसी,
खुशबू वही आज प्यार से
पूकारती है चॉद को
चॉद तुम आ जाओं न ।
शीतल नमी बूंदों से
काया है जिसकी बनी,
संतरंगी श्रृंगार कर जो
नीली चुनरियों से सजी,
बादलों के बीच जो
इठलाती सी चली,
बदली वही आज प्यार से
पूकारती है चॉद को
चॉद तुम आ जाओं न ।
Emial: drpramod.kumar@yahoo.in
चॉद तुम आ जाओ न ।
फूल की पंखुड़ियों की
सेज़ पर है जो पली,
मस्त पवन के साथ जो
खेलती हुई बड़ी,
पल्लवों के गीत में
संगीत सी है जो बसी,
खुशबू वही आज प्यार से
पूकारती है चॉद को
चॉद तुम आ जाओं न ।
शीतल नमी बूंदों से
काया है जिसकी बनी,
संतरंगी श्रृंगार कर जो
नीली चुनरियों से सजी,
बादलों के बीच जो
इठलाती सी चली,
बदली वही आज प्यार से
पूकारती है चॉद को
चॉद तुम आ जाओं न ।
Emial: drpramod.kumar@yahoo.in
कोई अपना-डा. प्रमोद कुमार
तुम्हे देखा तो जिंदगी, जीने को मचल गई
तुम्हें पाया तो जिंदगी, एक दर्द बन गई
और जाना तो, जीने की तमन्ना निकल गई ।
लोग चेहरे पे कई चेहरे लगा लेते हैं,
तुम हो कि चेहरों को पढ़ा करते हो;
पल, पल बदलते चेहरों के इस शहर में
तुम हो कि कोई अपना ढूढ़ॉ करते हो ।
लोग झूठे पे कई झूठ बोल लेते हैं,
तुम हो कि बातों में यकीं करते हो;
झूठ को सच्च साबित करने वालों में,
तुम हो कि कोई सच्चा ढ़डंढा करते हो ।
वफ़ा की बात कर जो बेवफ़ाई करते हैं,
वो बस खुद के लिए जीते हैं, मरते हैं;
हजारों ख़ाहिशो हो जिनकी अपनी,
तुम उनसे क्यों उम्मीदें किया करते हो ।
जलाकर ख़ाक कर देंगे तेरे दिल को,
प्यार से हाथ मौहब्बत का बढ़ा न देना;
लूट लेंगे उल्फत के गमों की दौलत भी,
कभी इनको दिल में बसा न लेना ।
बेगानों में अपना ढूढ़नें वाले इंसा,
चेहरों को नहीं दिल को पढ़ा करते हैं;
चमकते गुलिस्ता में असली फूलों को,
चमक से नहीं महक से परखा करते हैं ।
तुम्हे देखा तो जिंदगी, जीने को मचल गई
तुम्हें पाया तो जिंदगी, एक दर्द बन गई
और जाना तो, जीने की तमन्ना निकल गई ।
लोग चेहरे पे कई चेहरे लगा लेते हैं,
तुम हो कि चेहरों को पढ़ा करते हो;
पल, पल बदलते चेहरों के इस शहर में
तुम हो कि कोई अपना ढूढ़ॉ करते हो ।
लोग झूठे पे कई झूठ बोल लेते हैं,
तुम हो कि बातों में यकीं करते हो;
झूठ को सच्च साबित करने वालों में,
तुम हो कि कोई सच्चा ढ़डंढा करते हो ।
वफ़ा की बात कर जो बेवफ़ाई करते हैं,
वो बस खुद के लिए जीते हैं, मरते हैं;
हजारों ख़ाहिशो हो जिनकी अपनी,
तुम उनसे क्यों उम्मीदें किया करते हो ।
जलाकर ख़ाक कर देंगे तेरे दिल को,
प्यार से हाथ मौहब्बत का बढ़ा न देना;
लूट लेंगे उल्फत के गमों की दौलत भी,
कभी इनको दिल में बसा न लेना ।
बेगानों में अपना ढूढ़नें वाले इंसा,
चेहरों को नहीं दिल को पढ़ा करते हैं;
चमकते गुलिस्ता में असली फूलों को,
चमक से नहीं महक से परखा करते हैं ।
सज़ा-डा. प्रमोद कुमार
जिंदगी की राह में
हम सफर की चाह में
बस एक ख़ता कर बैठे
उनसे वफ़ा कर बैठे ।
बेवफाई हर कदम था
हर करम बेईमानियॉ,
एक अपना दिल दे के
हम ये क्या कर बैठे ।
हर अदा एक सितम थी
हरेक चाल रूसवाईयाँ,
उनसे वफ़ा की उम्मीद
हम ख़ुद से दगा कर बैठे ।
हर बात में था धोखा
हर सोच कलुसित थी,
प्यार करके ऐसे सनम से
हम खूद को सज़ा दे बैठे ।
जो पल गुज़ारे साथ तेरे
वो दर्द भरी सज़ा थी,
ऐसे बेवफ़ा सनम से
क्यों उम्मीदें-वफ़ा कर बैठे ।
जिंदगी की राह में
हम सफर की चाह में
बस एक ख़ता कर बैठे
उनसे वफ़ा कर बैठे ।
बेवफाई हर कदम था
हर करम बेईमानियॉ,
एक अपना दिल दे के
हम ये क्या कर बैठे ।
हर अदा एक सितम थी
हरेक चाल रूसवाईयाँ,
उनसे वफ़ा की उम्मीद
हम ख़ुद से दगा कर बैठे ।
हर बात में था धोखा
हर सोच कलुसित थी,
प्यार करके ऐसे सनम से
हम खूद को सज़ा दे बैठे ।
जो पल गुज़ारे साथ तेरे
वो दर्द भरी सज़ा थी,
ऐसे बेवफ़ा सनम से
क्यों उम्मीदें-वफ़ा कर बैठे ।
ये न बता सकूँगा मैं-डा. प्रमोद कुमार
तेरे प्यार ने है क्या दिया
ये ना बता सकूंगा मैं,
आज क्यों ऑखें हैं नम
ये न बता सकूंगा मैं ।
जब साथ तुम्हारा पाता था
सत संगत बन जाती थी,
मन मीरा बन जाता था
मन वीणा बन जाती थी,
तेरे साथ ने हैं क्या दिया
ये ना बता सकूंगा मैं ।
प्यार और विश्वास के स्वर
जब तुमसे मैं सुनता था,
तन मन्दिर बन जाता था
मन मन्दिर में पाता था,
उस विश्वास ने है क्या दिया
ये न बता सकूंगा मैं ।
तेरे प्यार ने हैं क्या दिया
ये ना बता सकूंगा मैं,
आज क्यों ऑखें है नम
ये न बता सकूंगा मैं ।
Email: drpramod.kumar@yahoo.in
तेरे प्यार ने है क्या दिया
ये ना बता सकूंगा मैं,
आज क्यों ऑखें हैं नम
ये न बता सकूंगा मैं ।
जब साथ तुम्हारा पाता था
सत संगत बन जाती थी,
मन मीरा बन जाता था
मन वीणा बन जाती थी,
तेरे साथ ने हैं क्या दिया
ये ना बता सकूंगा मैं ।
प्यार और विश्वास के स्वर
जब तुमसे मैं सुनता था,
तन मन्दिर बन जाता था
मन मन्दिर में पाता था,
उस विश्वास ने है क्या दिया
ये न बता सकूंगा मैं ।
तेरे प्यार ने हैं क्या दिया
ये ना बता सकूंगा मैं,
आज क्यों ऑखें है नम
ये न बता सकूंगा मैं ।
Email: drpramod.kumar@yahoo.in
परिचय
परिचय: डा. प्रमोद कुमार
जन्म तिथि : मई 30, 1956
शिक्षा : बी.ए. (दिल्ली)
एम.ए. (राजनीति शास्त्र)
एम.ए. (इतिहास)
एलएल.बी. (दिल्ली)
एलएल.एम. (दिल्ली)
उपाधिपत्र अन्तर्राष्टीय विधि (दिल्ली)
उपाधिपत्र औद्योगिक सम्बंध एवं कार्मिक प्रबन्ध (दिल्ली)
एम.बी.ए. (मानव संसाधन), मुम्बई
पीएच.डी. (दिल्ली)
अन्य प्रकाशन : 1) ``जफ़ाओं का मंज़र'' - कविता संग्रह सन् 1995
में प्रकाशित
2) समय पटल के अक्षर- कविता संग्रह-2008 में प्रकाशित
3) कच्चा मकान- कहानी संग्रह- 2008 में प्रकाशित
4) लगभग 250 से अधिक कहानी, लेख, कविताएँ एवं
अन्य रचनाओं का राष्ट्रीय पत्रिकाओं और अनेक
प्रतिष्ठित दैनिक पत्रों में प्रकाशन
योगदान : 1) ``ज्ञानोदय'' एवं ``निर्मल'' नामक गैर-सरकारी
संगठनों का संचालन । पर्यावरण हितैषी वातावरण
निर्माण एवं साक्षरता को बढ़ाने हेतु सर्मपित
2) शिक्षण संस्थाओं में अतिथि-वक्ता के रूप विविध
विषयों पर सत्रों का संचालन
-: पता :-
drpkrbi@yahoo.co.in
---------------------
परिचय: डा. प्रमोद कुमार
जन्म तिथि : मई 30, 1956
शिक्षा : बी.ए. (दिल्ली)
एम.ए. (राजनीति शास्त्र)
एम.ए. (इतिहास)
एलएल.बी. (दिल्ली)
एलएल.एम. (दिल्ली)
उपाधिपत्र अन्तर्राष्टीय विधि (दिल्ली)
उपाधिपत्र औद्योगिक सम्बंध एवं कार्मिक प्रबन्ध (दिल्ली)
एम.बी.ए. (मानव संसाधन), मुम्बई
पीएच.डी. (दिल्ली)
अन्य प्रकाशन : 1) ``जफ़ाओं का मंज़र'' - कविता संग्रह सन् 1995
में प्रकाशित
2) समय पटल के अक्षर- कविता संग्रह-2008 में प्रकाशित
3) कच्चा मकान- कहानी संग्रह- 2008 में प्रकाशित
4) लगभग 250 से अधिक कहानी, लेख, कविताएँ एवं
अन्य रचनाओं का राष्ट्रीय पत्रिकाओं और अनेक
प्रतिष्ठित दैनिक पत्रों में प्रकाशन
योगदान : 1) ``ज्ञानोदय'' एवं ``निर्मल'' नामक गैर-सरकारी
संगठनों का संचालन । पर्यावरण हितैषी वातावरण
निर्माण एवं साक्षरता को बढ़ाने हेतु सर्मपित
2) शिक्षण संस्थाओं में अतिथि-वक्ता के रूप विविध
विषयों पर सत्रों का संचालन
-: पता :-
drpkrbi@yahoo.co.in
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Thursday, September 17, 2009
रुह की प्यास: डा. प्रमोद कुमार
जो खो गया चमक कर
इस फैले हुए फलक में
मैं सारी रात तक के
वो तारा ढूँढता हूँ ।
गुम हो गई तन छूकर
हर रोम को सिहरन दे
उस गुमशुदा तरंग को
सागर में ढूँढता हूँ ।
जो दूर हो गई अब
शीतल-सी छाया दे के
इन घनघोर बादलों में
वो बदली ढूँढता हूँ ।
जो घुल के रह गई अब
देके तड़का इस दिलको
इस मतलबी चमन में
वो खुशबू ढूँढता हूँ ।
मेरे तन को तृप्त कर के
मन प्यास बुझा गई जो
इस लालची धरा पे
वो बूँद ढूँढता हूँ ।
----------------
Email: drpramod.kumar@yahoo.in
जो खो गया चमक कर
इस फैले हुए फलक में
मैं सारी रात तक के
वो तारा ढूँढता हूँ ।
गुम हो गई तन छूकर
हर रोम को सिहरन दे
उस गुमशुदा तरंग को
सागर में ढूँढता हूँ ।
जो दूर हो गई अब
शीतल-सी छाया दे के
इन घनघोर बादलों में
वो बदली ढूँढता हूँ ।
जो घुल के रह गई अब
देके तड़का इस दिलको
इस मतलबी चमन में
वो खुशबू ढूँढता हूँ ।
मेरे तन को तृप्त कर के
मन प्यास बुझा गई जो
इस लालची धरा पे
वो बूँद ढूँढता हूँ ।
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Email: drpramod.kumar@yahoo.in
Labels: ३.
Thursday, September 10, 2009
समय -पटल के अक्षर-डा प्रमोद कुमार
सूरज ! मैंने तुम्हें,
हर उन अक्षरों को
मिटाने को कहा था
जो मैंने दर्द की सियाही से
समय पटल पर लिखे थे
लेकिन तुम,
हर सुबह उगकर
हर उन अक्षरों को
चमकाकर
मैंरे मन में
दर्द का अहसास
जगाते रहे ।
यही नहीं, तुम,
हर सुबह आकर
उम्र से मेरी
एक एक दिन कम होने का
अहसास कराते रहे
और मैं हर रोज
बचे दिनों में
हर उन अक्षरों को
बार-बार पढ़ता रहा
जो मैंने दर्द की सियाही से
समय पटल पर
पहरों बैठ लिखे थे ।
उम्र बीत जाने पर
मैं मैं न रहा,
पर वो दर्द की सियाही से
समय-पटल पर लिखे
कुछ आक्षर भर हलाल हुई
एक जिंदगी की
दर्द भरी दास्ता
कहते रहे ।
---------------
याद-डा प्रमोद कुमार
जब घटा उमड़कर आएगी
तब याद तुम्हारी आएगी ।
एक दोपहरियॉ सावन में
हम बारिश से बचने को
जब दूर पहाड़ी के पीछे
आ बैठे थे आम्बियॉ नीचे
जैसे ही छेड़ा था मैंने
तेरी वीणा के तारों को
सागर सारे तेरे मन के
मचल उठे थे उफनन् को
सावन कितने तेरे तन से
तरस गये थे बरसन् को
गिरती बूॅदों की तानों में
कोयल ने गीत सुनाया था
अब जब भी कोयलियॉ
गीत प्यार का गाएगी
तब याद तुम्हारी आएगी ।
जब घटा उमड़ कर आएगी
तब याद तुम्हारी आएगी ।।
एक सॉझ किनारे गंगा के
जब छॉव पीपलियॉ बैठे थे
मन ही मन तब कस्में खाई
ऑखों ने कुछ बातें की थी
अपनी गोद सिर रख मेरा
जब तूने सहलाया था
लहराते काले बालों में
चॉद चमकता देखा था
लाल गुलाबी तेरे गालों में
एक फूल खिला देखा था
लहरों ने साज बजाया था
और गीत खगों ने गाया था
अब जब भी जल तरंग
कोई संगीत सुनाएगी
तब याद तुम्हारी आएगी ।
जब घटा उमड़कर आएगी
तब याद तुम्हारी आएगी ।।
डा प्रमोद कुमार मेल करे drpkrbi@yahoo.co.in
सूरज ! मैंने तुम्हें,
हर उन अक्षरों को
मिटाने को कहा था
जो मैंने दर्द की सियाही से
समय पटल पर लिखे थे
लेकिन तुम,
हर सुबह उगकर
हर उन अक्षरों को
चमकाकर
मैंरे मन में
दर्द का अहसास
जगाते रहे ।
यही नहीं, तुम,
हर सुबह आकर
उम्र से मेरी
एक एक दिन कम होने का
अहसास कराते रहे
और मैं हर रोज
बचे दिनों में
हर उन अक्षरों को
बार-बार पढ़ता रहा
जो मैंने दर्द की सियाही से
समय पटल पर
पहरों बैठ लिखे थे ।
उम्र बीत जाने पर
मैं मैं न रहा,
पर वो दर्द की सियाही से
समय-पटल पर लिखे
कुछ आक्षर भर हलाल हुई
एक जिंदगी की
दर्द भरी दास्ता
कहते रहे ।
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याद-डा प्रमोद कुमार
जब घटा उमड़कर आएगी
तब याद तुम्हारी आएगी ।
एक दोपहरियॉ सावन में
हम बारिश से बचने को
जब दूर पहाड़ी के पीछे
आ बैठे थे आम्बियॉ नीचे
जैसे ही छेड़ा था मैंने
तेरी वीणा के तारों को
सागर सारे तेरे मन के
मचल उठे थे उफनन् को
सावन कितने तेरे तन से
तरस गये थे बरसन् को
गिरती बूॅदों की तानों में
कोयल ने गीत सुनाया था
अब जब भी कोयलियॉ
गीत प्यार का गाएगी
तब याद तुम्हारी आएगी ।
जब घटा उमड़ कर आएगी
तब याद तुम्हारी आएगी ।।
एक सॉझ किनारे गंगा के
जब छॉव पीपलियॉ बैठे थे
मन ही मन तब कस्में खाई
ऑखों ने कुछ बातें की थी
अपनी गोद सिर रख मेरा
जब तूने सहलाया था
लहराते काले बालों में
चॉद चमकता देखा था
लाल गुलाबी तेरे गालों में
एक फूल खिला देखा था
लहरों ने साज बजाया था
और गीत खगों ने गाया था
अब जब भी जल तरंग
कोई संगीत सुनाएगी
तब याद तुम्हारी आएगी ।
जब घटा उमड़कर आएगी
तब याद तुम्हारी आएगी ।।
डा प्रमोद कुमार मेल करे drpkrbi@yahoo.co.in